Thursday 29 July 2010

सूर्य की सिंचाई

जब सुबह वे कर रहे होते हैं मार्निंग वाक
देखते हैं
जल रही होती हैं कई लोगों के घर के सामने बत्तियां
जिनका स्वीच बुझा देते हैं बूढ़ों की एक टोली के बुजुर्ग
कोसते हैं उनकी लापरवाही को
कि रात में वे लाइट जलाना नहीं भूलते
लेकिन सुबह बत्ती बुझाना
भूल जाते हैं

उन्हें याद नहीं रहता कि इतना तड़के तो नहीं टूट जाती सबकी नींद

सब तो
नहीं करते इन्तज़ार सुबह का
जैसा वे करते हैं बेताबी से
कि सुबह हो और वे जायें टहलने उन लोगों के साथ
जो उनसे भी ज़्यादा बेकरारी से करते हैं इन्तज़ार सुबह का
क्योंकि उनके पास किसी और चीज़ का इन्तज़ार बचा नहीं होता

और दरअसल वे जिसका करते रहते हैं इन्तज़ार
उसके ख़याल से ही उड़ी रहती हैं उनकी नींद
जिसे वे छिपाते हैं से

हां सबको पता होता है कि वे कहीं जाने के लिए प्रतीक्षारत हैं
और किसी भी क्षण उन्हें जाना पड़ सकता है

उनके जाने की उनसे अधिक उनके क़रीबी लोगों को रहती है प्रतीक्षा

वे काफी अरसे तक अपने घर में ऐसे रहते हैं जैसे रह रहे हों प्रतीक्षालय में

मार्किंग वाक करते समय वे मौसम की चर्चा करना नहीं भूलते
लेकिन दूसरी सारी चर्चाओं से बचते हैं
लौटते समय देखते हैं
कुछ लोगों को लोटे से सूर्य को जल चढ़ाते हुए
और कहते हैं इसीलिए, हां इसीलिए नमी रहती है प्रातः काल की फिज़ा में
रोज कहीं न कहीं, कोई न कोई, कर रहा होता है
सूर्य की सिंचाई।

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