Thursday 29 July 2010

झूठ की ओट में

सच की रक्षा के लिए तो अब झूठ भी तैयार नहीं
वह जानता है जिसे मारा ही जाना है अन्ततः किसी न किसी मोर्चे पर
क्यों की जाये उसकी रक्षा

कभी न कभी आदतन सच कह बैठेगा कि वह
दुबका हुआ है किसी झूठ की ओट में
और यह सच कहकर वह बढ़ा देगा झूठ की मर्यादा

अब झूठ नहीं चाहता अपने पक्ष में कोई दलील
उसने देखा है ऐसी ही दलीलों के कारण
झूठ नहीं रह सका रक्षणीय
वह डरता है अपने गरिमामंडन से।

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