Friday 30 July 2010

संवाद

बेटी के लिए कविताएं:दो
मैं तुमसे संवाद
चाहता हूं
केवल तुम्हारा पिता इसलिए नहीं होना चाहता
कि वंशानुक्रम का यह नियम है
मेरे हावभाव और शक्ल मिल सकती है
जैविकीय कारणों से
मैं तुम्हारी मां से अपने संबंधों के बिना पर ही
नहीं मान सकता तुम्हें अपना उत्तराधिकारी
मैं तुम्हें अपने संबंधों और वजहों से बनाना चाहता हूं अपना
मैं तुम्हारी खुशियों की वजह होना चाहता हूं
मैं तुम्हारी वजह से होना चाहता हूं
जैसे तुम मेरी वजह से भी हो
चाहता हूं रिश्ते की परिभाषा में अपना भी योगदान
मेरे तुम्हारे बीच जो कुछ हो वह केवल खून की वजह से न हो
इस आधार पर कि तुमने लिया है मेरे घर
और मेरी पत्नी के गर्भ से जन्म
हमारा रिश्ता केवल शुक्राणुओं की करामात भर नहीं है
नहीं चाहता कि तुम केवल इस आधार पर बनो मेरा वारिस
कि तुम हो मेरी खानदान की
मैं नहीं चाहता कि तुम्हें किन्हीं टुच्च््राी मर्यादाओं के लिए
बनना पड़े बलि का बकरा
नहीं चाहता कि खानदानी लडकी होने का
तुम्हें उठाना पड़े किसी तरह का को बोझ
जो मुझे भी लगते रहे कभी असह्य
मैं चाहता हूं तुम जानो
रिश्ता बांधता ही नहीं मुक्त भी करता है
और मैं चाहता हूं तुम्हें मुक्ति निःश्वास की तरह नहीं
उत्सव की तरह मिले
वरना लड़कियों के लिए न्दगी पगपग मुक्ति नहीं बंधन है
अदृश्य बंधनों को चुपचाप सहना और झेलना
और इसे नियति ही नहीं स्वभाव बनाना है
मैं तुम्हें बताना चाहता हूं तुम्हारी मां के उलट
के हर पुरूष के अंदर छिपा है एक पशु
की तर्ज पर हर औरत में छिपी है एक डायन
जो खा जाएगी तुम्हारे मासूम सपनों तक को
मार डालेगी उसके भ्रूण तक को
वह जहर भर देगी तुम्हारी कामनाओं के उत्स तक में
सका तुम्हें भान तक भी न होगा
एक गहरा अविश्वास लगातार तुम्हारी धमनियों में दौड़ने लगेगा
एक भय जो तुम्हारा पीछा करेगा तुम्हारी नींद में
औरत को एक छिपे खजाने की तरह मिला है
क्रमिक आत्महत्या का हुनर
से वह थाती की तरह सहेजती है अपनी बेटियों में.
वह सौंदर्य को श्राप में बदल डालती है क बार.
वही सौंदर्य जो अब दुनिया में उपहार के बदले
हथियार की जगह लेने लगा है.

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