Friday 30 July 2010

उपलब्धि

बेटी के लिए कविताएं:पांच
तुम वह हो जहां मुझमें खुद को पाया है तुम्हारी मां ने
जहां हम दोनों ने मिटा दिया है अपना स्वतंत्र अस्तित्व
तुम हमारी संधि हो
तुम हो हमारा सेतु
तुम हो वह
जहां से
हम चाहें भी तो लौट नहीं सकते अपने आप तक
तुम हमारे स्व के खोने की परिभाषा हो
तुम हमारे विलय की उपलब्धि हो.
तुममें झांकती है मेरी मुस्कान
तुम्हारे स्वर में है तुम्हारी मां की तान
तुममें मेरी शरारतें कहीं छिपी हैं
मां की आदतें तुममें रची बसी हैं
मेरी संवेदनशीलता तुमसे बंधी है
तुम्हारी मां की काया तुममें नधी है.
पर हम नहीं चाहते
तुम बनो हमारा प्रतिरूप
तुम पाओ प्रकृति से अपने होने की धूप
अपना छंद ही तुम्हें साधेगा
हम दोनों में वह शत्रु होगा
जो तुम्हें बांधेगा.

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