Friday 30 July 2010

स्वरलिपियां

बेटी के लिए कविताएं:तीन
वह स्वरलिपियां हैं मेरी खातिर
मैं सौंदर्यबोध के बावजूद
नहीं चाहता बदलना
उन आलमारियों का रंग स पर तुमने
चाक से ककहरा लिखना सीखा था
कि मैं कहीं खुद उधड़ने की पीड़ा का दंश न झेलूं
नहीं चाहा कि उधड़े जाएं वे स्वेटर
जो तुमने पहने थे अपनी शुरूआती सर्दियों में
नहीं फेंकना चाहता वह कूड़े का अंबार
जो तुम्हें कभी तुम्हारी पहली ज्ञासाओं
और अबूझ दुनिया का आकर्षण रहीं
पता नहीं कहां क्या छिपा हो
जो तुम्हें
एकाएक मिल जाए कभी
और तुम्हें लगे अरे यह तुम यह तुम थी
और यह कभी था तुम्हारी दुनिया का अभिन्न अंग
और मेरे लिए तो शुरू और बाद में का को अर्थ नहीं है
मन में तो तुम्हारी विभिन्न अवस्था की मुद्राएं
अक्सर गड्डमड्ड होती रहतीं हैं
और हर मुद्रा लगती है उतनी ही मनोहर
हर हरकत लगती है थोड़ी देर पहले की हो
इसलिए मैं चाहता हूं कायम रहे स्मृतियां
आखिरकार तुम्हें जाना ही है किसी और घर
और हमें रहना होगा स्मृतियों के ही सहारे
कितना असह्य पर तय सा है
आदमी का दुनिया से
और बेटी का अपने ही घर से विदा होना
और हमें तो दोनों के लिए तैयार होते रहना है तिलतिल
हमारी उपस्थिति में अपने अदृश्य वजूद के साथ
कहीं न कहीं छिपी रहती है विदा.

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