Thursday 29 July 2010

जो छूट गया

जो छूट गया है उसका क्या करूं
कहीं छूट गयी हैं
बहुत सारी चीज़ें
बहुत सारी बातें अनकही
बहुत सारे सवालों के ज़वाब
जिसमें था एक बेहद नाज़ुक सा

मैं छोड़ना चाहता हूं अपनी समस्त कामनाएं
एक छोटी सी हां के लिए
उससे पहले मैं चाहता हूं दुनिया की पूरी ताक़त
यदि वह हा न मिले

मैं आगे निकल आया
पता नहीं क्यों?
अभी भी ठीक-ठाक पता नहीं है इस क्यों का

हम आख़िरकार क्यों हैं विवश
पीछे बहुत कुछ छोड़ आने को
जिन्हें हमने अर्जित किया है अपने को खोकर

दरअसल हमें अर्जित करना है खोना
जिसे हमें अपने पाने से बदलना है

छूट गयी है पीछे एक गंध जो शायद याचना से मेल खा सकती थी
सबसे पहले वह बस छूटी अलस्सुबह मेरे गांव के पास के कस्बे से
जिस पर मैं सवार था, फिर छूटने के सिलसिला जुड़ गया

कितना विस्मय है कि होता हूं अक्सरहा अपनी छूटी हुई दुनिया में

क्या मुझे यह दुनिया हासिल करने के लिए जाना होगा एक और दुनिया में
क्यो छोड़े बग़ैर नहीं पाया जा सकता कुछ भी
क्यों है मेरी शिनाख़्त मेरे छोड़े हुए से ही

क्या मेरी उपलब्धियां हैं मेरा हासिल नहीं
मेरा खोना
यह कैसी रवायत है
कि रहना होता है
अपनी खोई हुई दुनिया में।

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