बेटी के लिए कविताएं:एक
कुत्ते को रंगा
रंगा मुर्गियों को
चूजों के कोमल परों पर लगाया अबीर आहिस्ते से
नीबू के पत्तों पर बेअसर रहा जलरंग
नारियल के पत्ते पर भी फेंक कर देखा
केले के पत्ते भी नहीं बचे
थोड़ी सी इधर वाली घास पर
जहां नंगे पांव टहलने को मना करती है अक्सर तेरी मां
मां की पूरी का रंग भी थोड़ा कर ग लाल
थोड़ा हरा
उसकी झिड़कियों के बावजूद
उन नंगधड़ंग बच्चों पर भी फेंक आ उन्हें दौड़कर पिचकारी के रंग
पर बारबार हर रंग की आजमाइश होती रही
इस बाप पर
मैं बचूं भी तो कैसे
कुदरत का हर रंग
तेरा है
तेरा हर रंग
मेरा है.
मैं तेरे खेल का गवाह हूं
मैं तेरे हर खेल का मददगार हूं
क्योंकि पर तू मेरा खेल है
मैं तेरा चेहरा लगाकर छुप गया हूं तेरे अंदर
तू मेरे अंदर है दूसरी काया होकर भी.
Friday 30 July 2010
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