Monday 5 July 2010

रेत की सवारी

दीघा में समुद्रतट की गीली रेत पर शाम को चलते हुए
अचानक दीख गया एक किशोर
साइकिल पर चलते हुए
जबकि लोग लुत्फ ले रहे थे घुड़सवारी का

मैंने किशोर से कुछ देर के लिए साइकिल ली
किराये पर
और साइकिल पर सवार हो चलने लगा रेत पर
मुझे एकाएक लगा
मैं साइकिल नहीं
रेत पर सवार हूं
यह सवारी मुझे विस्मयकारी लगी

मैं रेत पर सवार था
और दौड़ रहा था
दिगंत के किनारे-किनारे
वह दिगंत
जहां समुद्र का असीम जल
एकाकार हो गया था आकाश से
समुद्र जल में
डूबते सूर्य की परछाही के कारण
यह पता लगाना मुश्किल था कि सूर्य डूब रहा है
या उग रहा है
पता नहीं वह आकाश से समुद्र में डूब रहा है
या समुद्र से आकाश में
उग रहा है
जबकि पर्यटक सूर्य व समुद्र की विस्मयकारी रोशनी का ले रहे थे आनंद
मैं रेत पर सवारी का आनंद लेने में डूबा रहा
और मुझे मिल गयी यात्राओं की
एक नयी कुंजी

बरसों बीते
मैं कभी पतंग पर सवार हो उड़ता हूं हवा में
झूला झूलने लगता हूं
किसी नीम की फुनगी पर बैठ गौरेया के पंख पर

विश्वास कीजिए
मैं चोट से कराह हुआ
जब एक टिकोरे के साथ ऊंची टहनी पर दुबक कर बैठा था कड़ी धूप में
और तेज़ हवा के झोंके से
गिरा ज़मीन पर-धड़ाम
उस दिन चीखा था ‘बचाओ-बचाओ’
जब एक कागज़ की डोंगी में बैठा यात्रा कर रहा था चींटियों के साथ
जो पानी की तेज लहर से अचानक उलट गयी।

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