मेरे जीवन में एक बड़ा विस्फोट था
बेटी का मेरे जीवन में आना
और उससे भी बड़ा
उसके काफी अरसे बाद
मां-बाबूजी की जीवन में वापसी
इस प्रकार खत्म होने लगा
मेरे जीवन और कविताओं का इकहरापन
बेटी व मां-बाप के बीच
बंधी है एक ऐसी महीन डोर
जिससे उड़ रही है मेरे जीवन की पतंग
बह रही हवा एक दिशा से आकर मुझसे होती हुई निकल जाती है दूसरी ओर
मैं एक माध्यम भर हूं
कर रहा हूं एक की आंच का
दूसरे तक हस्तांतरण
एक की भाषा का अनुवाद दूसरी में
जीवन के दो सिरे हैं
इन्हीं दोनों के बीच है
मेरे जीवन का सप्तक
सा से सा के बीच।
Thursday 29 July 2010
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आपकी रचना पढ़ कर मन गदगद हो गया।
ReplyDeleteअति प्रभावकारी अभिव्यक्ति ! सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी