Thursday 29 July 2010

पैसे फेंको

पुल आया
नदी के नाम, गंगा, कावेरी, सरयू के
करो नमन्
अइंछो अपने पाप-पुण्य पैसे फेंको
जो सम्बंध विसर्जित उनकी
स्मृतियों पर पैसे फेंको

पेट बजाता खेल दिखाता, सांप नचाता एक संपेरा
रस्सी पर डगमग पांव सम्भाले उस बच्चे की हंसी की ख़ातिर
नेत्रही गायक, भिखमंगे, उस लंगड़े, लूले, बूढ़े
अंकवारों में लगे हुए दो बच्चे ले मनुहारें करती
युवती के फट गये वसन पर डाल निग़ाहें पैसे फेंको

दस पइसहवा, एक चवन्नी, छुट्टे बिन एक सगी अठन्नी
जेब टोहकर, पर्स खोलकर, अधरों पर मुस्कान तोलकर
त्याग भाव से, दया भाव से दिखा-दिखा कर पैसे फेंको

बिकती हुई अमीनाओं पर, रूप कुंवर की चिता वेदी पर
सम्बंधों की हत्याओं पर, धर्म के चमके नेताओं पर
मंदिर के विस्तृत कलशों पर, मस्ज़िद के ऊंचे गुम्बद पर
गुरद्वारे के शान-बान पर, सम्प्रदाय के हर निशान पर
शीश नवाकर पैसे फेंको, आंख मूंदकर पैसे फेंको
छीन लिए जायेंगे तुमसे बेहतर है कि खुद ही फेंको
जितने भी हों तत्पर फेंको, डर है भीतर पैसे फेंको
जान बचाओ पैसे फेंको, लूट पड़ी है पैसे फेंको

अनब्याही बहनों के कारक उस दहेज पर
बिन इलाज़ मां की बीमारी के प्रश्नों पर
बनिये के लम्बे खाते पर, टुटहे चूते घर भाड़े पर
रोज़गार की बढ़ती किल्लत
मुंह बाये त्यौहारों के शुभ अवसर से वंचित खुशियों के
नाम उदासी लिखकर उसकी गठरी पर कुछ पैसे फेंको
काम तुम्हारे क्या आयेगा यह भी खूब समझकर फेंको

मुक्ति पर्व यह पैसे फेंको
सपनों पर अब कफ़न की ख़ातिर पैसे फेंको
घर के होते घाट कर्म पर पैसे फेंको
मृत्युभोज अपना जीते जी सोच-सोच कर पैसे फेंको
इस समाज के ढांचे पिचके हुए कटोरे
थूक समझकर देकर गाली पैसे फेंको
कंठ से जैसे फूट रही धिक्कार तुम ऐसे पैसे फेंको
सब कुछ है स्वीकार तुम्हें तो पैसे फेंको
फिर-फिर, फिर-फिर पैसे फेंको।

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