बेटी के लिए कविताएं:चार
मैं देखना चाहता हूं तुम्हारी आंखों से वह दुनिया एक
बार फिर
से मैं छोड़ आया था काफी पीछे
मैं तुम्हारे सपनों में पैठना चाहता हूं
मैं चाहता हूं तुम्हारी हर प्रतिक्रिया का साझेदार बनना
इन सबसे बढ़कर मैं चाहता हूं
इस न दुनिया की न संवेदना का स्वाद
तुम्हारे मार्फत मुझ तक पहुंचे
मुझे तुम्हें कुछ सीखाना नहीं सीखना है
मुझे सीखनी है न भाषा और न संवेदना की लय
मुझे सीखनी है एक और मातृभाषा तुम्हारे व्याकरण में
मैं चाहता हूं तुम्हारी मार्फत
भूसे में दबा वह आम खोजना
जो मैंने अपने बचपन में दबा कर चला आया था
अपने गांव से शहर
मैं जानता हूं कि तुम केवल तुम ही खोज सकती हो
उसकी गंध के सहारे जो मुझ में तो अब खो चुकी है पर
तुममें जरूर कहीं न कहीं अभी होगी सुरक्षित
मैं चाहता हूं उन किस्सों को याद करना
किस्सों से दृश्य और धुन चुनना
जो मेरी दादी ने सुनाए थे मुझे
पर तुम तक नहीं पहुंची उसकी को आंच
मैं चाहता हूं तुम भी उससे तपो
मैं चाहता हूं अपने गांव की गांगी नदी के पानी में
फिर से धींगा-मस्ती करना तुम्हारे माध्यम से
जहां तुम कभी नहीं गयी.
मैं चाहता हूं तुम मेरे गांव एक बार जरूर जाओ
यकीन है अमरा तुम्हें भी पहचान लेगी
मेरे बिन बताए और तुम भी बिना किसी से पूछे
पहुंच जाओगी उन सभी जगहों पर जहां मैंने
अपना बचपन खोया है
और से खोजना तुम्हें भी अच्छा लगेगा.
Friday 30 July 2010
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