एक बेहद अकेला आदमी
जब कभी, जहां कभी बोलता है
उसकी बातों में होती हैं
कई-कई आवाज़ें
कई-कई ध्वनियां
कई-कई अर्थ
कई-कई चुप्पियां
कई अनुगूंजें
थान की थान
तहियायी हुई
उसकी बातों में
होती है एक संवादरहित ठंडक
जब कभी एक बेहद अकेला आदमी बोलता है
जब वह बोलता है
दरअसल कर रहा होता है एकालाप
लड़ रहा होता है
ख़ुद के ही सवालों से
अपनी चुप्पियों से
अपनी ही आवाज़ के ज़रिये
एक अकेला आदमी
जब कभी बोलता है
बहुत कुछ तोड़ता है
और सबसे अधिक अपने-आपको
वह बोलता चला जाता है
मिनट दर मिनट
घण्टा दर घण्टा
जैसे वह बोलते रहना चाहता हो
सदी दर सदी
इसीलिए बहुत ख़तरनाक़ होता है
अकेले आदमी का बोलना
क्योंकि
उसका बोलना भी
दरअसल उसकी चुप्पी ही है...।
Monday, 5 July 2010
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