Tuesday 29 June 2010

हंसी की तासीर


रेखांकनःमृदुला सिंह
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तुम जानो, बहुत दिनों से नहीं हू मैं-अर्थ
तुम मानो, बहुत दिनों से नहीं हूं-प्यास
तुम हंसो, बहुत दिनों से हूं मैं-थिर

॥क॥
मैं झुक गया हूं, जहां मैं चल रहा था वहीं।
उसी रास्ते के आगे। मैं रास्ते के आगे प्रार्थनारत हूं।
क्यों;मैं चूका, कहां-यह मत खोजो।
मैं चूक गया था रास्ते से दहलकर।
है भी विकराल।
रास्ते से मुक्त करो छूकर मुझे।
आओ। तुम जानो, बहुत दिनों से नहीं हूं-अर्थ।
मुझमें भरो थोड़ा सा।
बाकी तो भरेगा ही स्वयं, अगर वह सचमुच में हुआ अर्थ।
नहीं भी भर सका, हो ही जायेगा किसी न किसी के लिए रत्ती भर अर्थ।

॥ख॥
मैं गले तक क्यों हूं भरा।
भरा भी हूं या हूं इकहरा।
प्यास ठुनके भौहों पर-अधरों में
आंखों में, हाथों में जगे, मगर लुप्त।
भीतर कुछ क्या हुआ?
प्यास का मर जाना होता नहीम किसी भी भांति।
हुआ है तो कहां जाकर सोई है प्यास की बच्ची।
कान खींचकर लाओ कोई।
दिन चढ़े तक सोना ठीक होता नहीं
प्यास ही सोई रही तो जगेगा क्या?
ओ प्यास, मुझे पी। मुझे लग। प्यास री।
कस के लग। लग मुझे।

॥ग॥
हंसो। सहसा। मुझे पर नहीं-में।
थिर है कहीं कुछ-क्या पता प्राण ही न हो मेरा।
प्राण न भी हो थिर, प्रयत्न तो हुआ ही हुआ है।
उसे झिंझोड़ो। हालांकि हंस के झिंझोड़ना होता नहीं किसी से।
तो फिर हंस के कुछ और करो। क्या चौंकाओगी?
अच्छा चलो बजा दो।
हंस के बजा सकती हो-थिर हवा, थिर नदी, मौन अन्ततः
प्रार्थना हो सकती है पराजित हंसी से
बढ़ सकती है प्रार्थना से हंसी की तासीर।

हंस दो मुझमें।

बहुत दिनों में हो जाऊं-अर्थ। हो जाऊं गति।
जग जाये प्यास।
जानो। मानो। हंसो तो।

8 comments:

  1. आपके ब्लोग पर आ कर अच्छा लगा! ब्लोगिग के विशाल परिवार में आपका स्वागत है! अन्य ब्लोग भी पढ़ें और अपनी राय लिखें! हो सके तो follower भी बने! इससे आप ब्लोगिग परिवार के सम्पर्क में रहेगे! अच्छा पढे और अच्छा लिखें! हैप्पी ब्लोगिग!

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  2. जिन्दा लोगों की तलाश!
    मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!


    काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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    सच में इस देश को जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

    हमें ऐसे जिन्दा लोगों की तलाश हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

    इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

    अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

    आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

    शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

    सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! अब हम स्वयं से पूछें कि-हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

    जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-

    (सीधे नहीं जुड़ सकने वाले मित्रजन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार से बचाव तथा निवारण हेतु उपयोगी कानूनी जानकारी/सुझाव भेज कर सहयोग कर सकते हैं)

    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
    राष्ट्रीय अध्यक्ष
    भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
    7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
    फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
    E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in
    http://presspalika.blogspot.com/
    http://baasindia.blogspot.com/

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  3. — भावों की जटिलता इतनी कि अज्ञेय को मात दे रहे हैं.
    — मुक्तिबोध से भी कठिन शब्द-विन्यास अपनाया हुआ है.
    — उस मनःस्थिति तक पहुँच पाना कठिन हो गया है जिसमें कविता का निर्माण हुआ है.
    — आपमें दो ऐसे श्रेष्ठ कवियों का समावेश देखकर सभी शब्द-शक्तियों से अर्थ तक पहुँचने की सीढ़ी माँग रहा हूँ लेकिन कोई देने को तैयार नहीं. शायद उनके पास इतनी ऊँची सीढ़ी नहीं है.

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  4. ब्लाग संसार में स्वागत है. अच्छी कवितायें हैं, शुभकामनायें !

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  5. अच्छा लगा आपका ब्लॉग, हिंदी में लेखन के लिए बधाई।
    स्वागत है!
    ================
    न जानो तुम
    स्वाद - गंध - स्पर्श से परे
    टिटहरी की उड़ान और गिलहरी की फ़ुदक
    बिम्ब अँधेरे में धुएँ के
    कुछ टूटता,
    कुछ गलता
    कुछ चाहा सा हो गया अचानक चित्तीदार
    रोएँ उड़ रहे हैं
    किरनों के स्वयम्वर में
    लजाती हुई परम्परा
    रूठती है
    दिनमान
    राका अशेष
    और समय चुप
    कराहते हुए सन्नाटे में
    सुलगती हुई बूँदें
    अब शायद महक आए
    किसी सड़ाँध से अलग
    शायद मोगरे की-
    शायद पसीने की
    आभार!

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  6. चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा। हिंदी ब्लागिंग को आप और ऊंचाई तक पहुंचाएं, यही कामना है।
    इंटरनेट से घर बैठे आमदनी की इच्छा हो तो यहां पधारें-
    http://gharkibaaten.blogspot.com

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  7. इस चिट्ठे के साथ हिंदी चिट्ठा जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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